कोविड-19 का भारतीय राजनीती पर प्रभाव

भारत में कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारें इससे निपटने के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रही हैं.वजह से आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ गई हैं.हर क्षेत्र पर इसका प्रभाव पड़ रहा आने वाले समय में भारतीय राजनीती पर भी इसका रभाव पड़ना तय है
ऐसे में यह समझना होगा कि कोरोना वायरस की वजह से भारत की राजनीति किस-किस तरह से प्रभावित हो सकती है.
अर्थव्यवस्था
भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि कोविड-19 संक्रमण भारत के भविष्य पर किसी बुरे साए की भांति झूल रहा है. गोल्डमैन सैक्स ने 2020-21 के दौरान भारत में 1.6 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया है. 2018 में भारतीय जीडीपी में वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत थी. आने वाले दिनों में विपक्षी पार्टिया ये मुद्दा जरूर उठाएगी की अर्थव्यवस्था की हालत सुधारने के लिए सरकार ने क्या ठोस कदम उठाये निम्न वर्ग खासकर दूसरे राज्यों में यह रहे मजदूरों को घर आपसी का मुद्दा आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी पार्टियों के या एक बड़ा मुद्दा हो सकता है . बेरोजगारी बढ़ने से इसकी आंच निम्न वर्ग के बाद अब मध्य वर्ग तक पहुंचेगी. एक राजनीतिक वर्ग के तौर पर देखें तो हमारे देश में मध्य वर्ग ही सबसे मुखर वर्ग है. ऐसे में मध्यम वर्ग की परेशानी बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था का बुरा हाल बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा.
स्वास्थ्य सुविधाएं
कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में देश की खस्ताहाल मेडिकल सुविधाएं सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां साबित होंगी. भारत सरकार ने नवंबर, 2019 में संसद को बताया था कि देश भर में प्रति 1,445 लोगों पर एक डॉक्टर मौजूद हैं. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक प्रति एक हज़ार लोगों पर एक डॉक्टर से कम है.भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि देश में मेडिकल उपकरणों की भारी किल्लत है. इसमें डॉक्टरों के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) और मरीज़ों के लिए वेंटिलेटर की कमी शामिल है. जैसे-जैसे भारत में कोरोना का प्रभाव बढ़ रहा है स्वास्थ्य सेवाएं एक बड़ा राजनितिक मुद्दा बन सकता है इसके अलावा स्वास्थ्य क्षेत्र में जिस निजी क्षेत्र को सरकार ने बहुत बढ़ावा दिया गया, आज कोरोना से जंग में उन निजी अस्पतालों की भूमिका न के बराबर है. इसलिए अगर भारत में कोरोना का फैलाव खतरनाक स्तर पर होता है तो जाहिर है कि आने वाले दिनों में जो चुनाव होंगे, उनमें सभी पार्टियों से लोग यह उम्मीद करेंगे कि स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर वे एक स्पष्ट रणनीति सुझाएं. इसका मतलब यह हुआ कि स्वास्थ्य सुविधाएं आने वाले समय में एक चुनावी मुद्दा बन सकती हैं. ऐसी स्थिति में लोगों के स्वास्थ्य को निजी क्षेत्र के अस्पतालों और निजी इंश्योरेंस कंपनियों के हवाले छोड़ने की जो लोक नीति चल रही थी, उसमें स्वाभाविक तौर पर बदलाव होगा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार की भूमिका बढ़ाने की ठोस कोशिशें दिख सकती हैं.
कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में केंद्र सरकार द्वारा इस कोशिश में उन्हें अभी तक भारत के नेताओं का ही नहीं बल्कि दुनिया भर के प्रमुख नेताओं का साथ मिल रहा है.इससे थोड़े ही समय के लिए सही उनका भरोसा मजबूत ज़रूर होगा. लेकिन मोदी सरकार के सामने कई और गंभीर चुनौतियां भी हैं जिनका हल तत्काल पाना मुश्किल है. लचर स्वास्थ्य सुविधाएं, बड़ी आबादी का बोझ और लॉकडाउन के कारण आर्थिक मुश्किलें उनके लिए बड़ी चुनौतियां साबित हो सकती हैं.जिसका आने वाले समय में विपक्ष पूरा फायदा उठाने की कोशिश करेगा